भोजपुर के नागिरी प्राचारिणी नाट्य मंचन से हुआ गुलजार

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आरा। आरा के चर्चित रंगमंच स्थल नागिरी प्राचारिणी में रंगमंच के जादू की फिर से खोज भूमिका की तीसरे दिन शुद्रक कृत नाटक एवं श्रीधर जी द्वारा निर्देशित ” मृच्छाकटिक” पर कलाकारों ने नाटक की प्रस्तुति किया।नाटक आरंभ में नायक चारुदत्त और विदूषक के वार्तालाप से शूरू हुआ। कलाकारों ने बताया कि चारुदत्त पहले अमीर था।पर अब निर्धन निधन हो गया है कहता है कि मृत्यु अधिक वांछनीय है। अतिथियों का सत्कार करना और दान देना उसका स्वभाव भाव है नाटक के दूसरे अंक में वसंतसेना और उसकी दासी मदनिका का वार्तालाप हुआ। नाटककारों ने बताया कि वसंतसेना के मन में चारुदत्त के प्रति प्रेम अंकुरित होता है उसे लगता है कि निर्धन व्यक्ति से प्रेम करना उसकी जैसी गणिका के लिए निर्दलीय नहीं माना जाएगा नाटक में जुआ खेल का पसंद भी है जुआरियों के बीच स्वर्ण – मुद्राओं के लिए झगड़ा होता है। ऐसे ही एक जुआरी जो चारुदत्त को जानता है उसकी वसंतसेना रक्षा करती है चारुदत्त वसंतसेना के लिए गुणों की प्रतिमूर्ति है वह कहती है कि जहां गुण है वहां मन नहीं रहता आर्यक को मुक्ति के प्रयासों के साथ नाटक की कथा आगे बढ़ाती है । वह उभर चारुदत्त से मिलकर लौटते वक़्त गलती से गाड़ी बदल जाने के कारण वसंतसेना शकार के चंगुल में फंस जाती है। वकार अपने जानतें उसकी सत्यता कर देता है लेकिन वसंतसेना व जाती है और जुआरियों जो बौद्ध भिक्षु बन चुका है उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देता है दृष्ट शकार न्यायालय में जाकर चारुदत्त पर वसंतसेना की हत्या का आरोप लगता है। नाटक में श्रीधर ने शकार और सुधीर सुमन ने चोर की भूमिका में दर्शकों को प्रभावित किया।चारुदत्त और वसंतसेना के रूप में लोकेश दिवाकर और पूजा ने अपनी बेहतरीन अभिनय प्रस्तुत किया। संवाहक के रूप में आजाद भारती ,दिपक सिंह,आशा पाण्डेय,वेद प्रकाश, सराहानीय अभिनय किया।

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