बातचीत में आम अवधारणा थी कभी नीतीश सरकार आंतरिक संरचना और सुशासन के लिए जाना जाता था।आज ठीक उलट सरकार संरचनाओ को छोड़ संसाधन जुटाने मे कुछ ज्यादा ही तत्पर दिखता है ।ऐसा हम नही वो लोग कहते हैं जिनके समर्पण के बाद बने नये नितिश सरकार से संरचनाओ की उम्मीद जगी थी।जी हाँ ? ट्रक आनर्स एसोसिएशन आज सरकार को अंग्रेजों से तुलना करते हुए कहते फीर रहे है कि अजादी के पूर्व लगान वसूली कोई ब्रिटिश अधिकारी नही देश के लोग ही करते थे, यह सब तब होता था जब उन्हें पैसे की जरुरत पडती थी ।उन्हें इस बात से कोई लेना देना नहीं रहता था कि भारतीय अर्थव्यवस्था क्या है ।ठीक वैसे ही आज सरकार अंग्रेजों के ताने-बाने से सीख लेत हुए बाजार में गाडी के आमदनी खर्च का हिसाब जाने वगैर टैक्स पर टैक्स कसे जा रहा है ।खास तो है कि बक्सर से कहलगांव तक की दूरी तय करने मे दो गंगा ओवरब्रिज भागलपुर और छपरा चालू है।जिस रास्ते से व्यापार कर रहे ट्रकों की स्थिति ऐसी कि महीने मे तीन से चार बार आ जा सकते है।पूरे महीने की आमदनी और खर्च का ब्योरा जाने तो वाहन संचालन के लिए जरूरी कागजात की पूर्ति तक नही संभव है।ऐसे मे नये परिवहन कानून का अतिरिक्त भार अंग्रेजों के लगान से कम नही है ।बात कानूनी प्रक्रिया से वाहन संचालन की करे तो संरचना के वगैर कुछ भी संभव नहीं दिखता है।ट्रक यूनियन लगातार अंडरलोड वाहन संचालन की वकालत करते रहा है।लेकिन सरकार के संरचना और कुब्यवस्थित प्रशासनिक ब्यवस्था ट्रक मालिकों के सामने जीवन यापन को लेकर प्रतिस्पर्धा के बाजार में खड़ा कर देता है ऐसे में ट्रक यूनियन सरकार पर विकास की प्रतिबद्धता को छोड़ लगान वसूली का आरोप लगाते हुए कहा कि मंदी की मार से परेशान वाहन संचालकों को संवैधानिक संरचनाओ के साथ व्यापार का माहौल प्रदान करने की मांग किया है ।